मंदिर का

इतिहास

निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रार्दुभाव 3096 ईशा. पूर्व आज से जगभग 5000 वर्ष माना जाता है, परन्तु निम्वार्क दर्शन जो कि द्वैताद्वैत के नाम से समग्र भारत वर्ष में प्रसिध्द हुआ के समय काल से ही इसका वास्तविक प्रचलन समग्र भारत में मनाना जाता है। जिसका समय काल 13 वीं शताब्दी माना जाता है। आचार्य निम्वार्क जी का संक्षित्प जीवन परिचयः- आचार्य जी श्री कृष्ण को उपास्य के रूप में स्थापित करने वाले निम्वाकालाचार्य वैष्णव आचार्य में प्राचीनतम माने जाते है। राधा कृष्ण की युगलोपास्वना को प्रति स्थापित करनें वाले निम्वाकाचार्य का प्रादुभाव कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। भक्तों की मान्यतानुसार आचार्य निम्बार्क का आविर्भाव काल द्वापर के अंत में कृष्ण के प्रपौत्र वृजभान और परीक्षित पुत्र जन्मेजय के समकालीन बताया जाता है। निम्वाकाचार्य ने ब्रह्मसूत्र, उपनिश और गीता पर अपनी टीका लिखकर अपना समग्र दर्शन प्रस्तुत किया। इनकी यह टीका वेदांत- पारिजात सौरभ (दस श्लोकी) के नाम से प्रसिध्द है। इनका मत द्वैताद्वैत या भेदाभेद के नाम से जाना जाता है। समग्र भारत वर्ष में निम्वार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ में सलेमाबाद (जो कि अब निम्वार्क दर्शन के नाम से जाना जाता है।) राजस्थान में है। निम्वार्क सम्प्रदाय के अन्य प्रमुख स्थानो / पीठों में से बडा मंदिर बीना भी एक प्रमुख महत्व रखता है। बड़ा मंदिर बीना का संक्षिप्त इतिहास:- बडा मंदिर बीना निम्वार्क सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार के साथ लोक कल्याण के कार्यों के लिए शुरू से ही प्रसिध्द रहा है। संत परम्पराओं के उल्लेख अनुसार बडा मंदिर बीना का इतिहास आज से लगभग 1000 वर्ष में जाकर ठहरता है। जिस समय समग्र बीना परिक्षेत्र जंगल से घिरा हुआ था, उस समय भी यहाँ शिव मंदिर एवं दीप स्तंभ स्थापित थे। ज्ञात स्त्रोत से विदित होता है कि यह स्थान तुलसीदास जी एवं सूरदास जी का पढाव स्थान भी रहा है।

बड़ा मंदिर बीना का वास्तविक प्रार्दुभाव संत शिरोमणि एवं निम्बार्क दर्शन के प्रमुख आचार्य महंत श्री दयालदास जी के समय काल से शूरू होता है। उन्होनें ही अपने समयकाल बडे मंदिर की वास्तविक स्थापना की और प्रचार प्रसार किया, तदन उपरांत इनके शिष्य बिहारी दास जी ने भी मंदिर के अस्तित्व को बनायें रखने में अपना प्रमुख योगदान दिया। बाद मे महंत श्री भगवानदास जी के समयकाल में बडे मंदिर बीना ने अपनी अपनी प्रमुखता प्राप्त कर ली। मंदिर के साथ महंत श्री भगवानदास जी ने सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यों में बीना के लिए अपना प्रमुख योगदान दिया। भगवान जी के बाद महंत श्री मदन मोहन दास जी के बड़े मंदिर परिक्षेत्र एवं दार्शनिक अभिव्यक्तियों की पूर्ण सुरक्षा करते हुये समस्त मंदिर परिसर को विघटित होने से न केवल सुरक्षित किया, वल्कि अपने शिष्य महंत श्री राधामोहन दास जी के माध्यम से इसको एक आधुनिक भव्यता एवं सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों को गति प्रदान की। आपने अपने जीवन काल में विविध धार्मिक, सम्मेलनों एवं यज्ञों के माध्यम से पूरे परिक्षेत्र को न सिर्फ धार्मिक वातावरण उपलब्ध कराया,वल्कि भारतीय संस्कृति को भी प्रखरता प्रदान की। वर्तमान में बडा मंदिर बीना महंत श्री राधामोहन दास जी के मार्गदर्शन मे न सिर्फ विधिवत कार्यरत है, वल्कि शिक्षा सहित कई सामाजिक एवं धार्मिक परिक्षेत्रों मे भी सक्रिय रुप से अपनी भूमिका का विर्हन कर रहा है।